क्या AI कभी जंग के मैदान में इंसान की जगह ले सकता है?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI अब केवल साइंस फिक्शन का हिस्सा नहीं रहा। युद्ध के मैदान में इसकी भूमिका दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। पहले जहां तकनीक केवल निगरानी और संवाद तक सीमित थी, अब वह निर्णय लेने, लक्ष्य पहचानने और यहां तक कि हमले करने जैसे कार्यों में भी इंसानों की सहायता या कभी-कभी पूरी जगह ले रही है।
लेकिन बड़ा सवाल यह है: क्या AI कभी युद्ध में इंसान की पूरी तरह से जगह ले सकता है? इस लेख में हम इसी सवाल का विश्लेषण करेंगे — AI की क्षमताएँ, सीमाएँ, नैतिक पहलू और भारत की तैयारी।
युद्ध में AI का वर्तमान रोल
आज की लड़ाइयाँ केवल गोलियों और टैंकों तक सीमित नहीं रहीं। युद्ध अब डेटा, सटीक जानकारी और तेज़ निर्णय लेने की जंग बन चुकी है — और इसमें AI सबसे आगे है।
1. Surveillance & Targeting (निगरानी और लक्ष्य साधना)
ड्रोन और सैटेलाइट से मिले फुटेज को AI algorithms real-time में प्रोसेस करते हैं और दुश्मन के मूवमेंट की भविष्यवाणी करते हैं। अमेरिका का Project Maven इसका अच्छा उदाहरण है, जो imagery data से संभावित टार्गेट पहचानता है।
2. Loitering Munitions (भटकते बम)
यूक्रेन युद्ध में FPV ड्रोन और AI-guided loitering munitions ने दिखाया है कि मशीनें अब खुद ही लक्ष्य पहचानकर हमला कर सकती हैं।
3. AI in Decision Support
AI युद्ध की परिस्थितियों का विश्लेषण कर कमांडरों को कई संभावित रणनीतियाँ सुझाता है। इससे समय की बचत होती है और रणनीति में सटीकता आती है।
क्या इंसानों की ज़रूरत खत्म हो जाएगी?
AI की प्रगति देखने के बाद यह मान लेना आसान है कि एक दिन इंसान की ज़रूरत नहीं रहेगी। लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है।
🔸 इंसान का अनुभव और संवेदना
AI डेटा के आधार पर काम करता है, लेकिन युद्ध में कई बार परिस्थितियाँ मानवीय संवेदनाओं, नैतिकता और तत्काल अनुभव पर आधारित होती हैं। यह निर्णय कोई मशीन नहीं ले सकती।
🔸 गलत पहचान का खतरा
कई बार AI algorithms एक बच्चे को हथियारधारी सैनिक समझ सकते हैं। ऐसे “False Positives” जानलेवा साबित हो सकते हैं।
🔸 Command Responsibility
यदि कोई autonomous weapon गलती से नागरिकों पर हमला कर दे, तो जिम्मेदार कौन होगा? कमांडर, प्रोग्रामर, या मशीन?
नैतिक और कानूनी चुनौतियाँ
नैतिक सवाल
क्या किसी मशीन को इंसानी जान लेने का अधिकार मिलना चाहिए? क्या वो युद्धबंदी को पहचान पाएगी या आत्मसमर्पण को समझेगी?
कानूनी सवाल
संयुक्त राष्ट्र में “Killer Robots” पर कई देशों में चर्चा जारी है। लेकिन अभी तक AI हथियारों पर कोई सर्वमान्य अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं बना है।
🇮🇳 भारत की तैयारी और भविष्य
भारत ने भी हाल ही में Operation Sindoor के ज़रिए AI-सक्षम ड्रोन का उपयोग कर यह साबित किया कि हम तकनीकी रूप से पीछे नहीं हैं। भारत में DRDO, BEL और कई defense startups AI आधारित surveillance, navigation और targeting systems पर काम कर रहे हैं।
स्वदेशी AI की ज़रूरत
भारत को ऐसे AI सिस्टम्स चाहिए जो भारतीय युद्ध-सिद्धांत, भूगोल और रणनीति के अनुसार trained हों। Imported AI सिस्टम हमेशा local situations को नहीं समझ पाते।
शिक्षा और तकनीक
भारतीय छात्रों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को अब coding की जगह combat coding पर काम करना होगा। जिससे भारत का अपना military-grade AI ecosystem तैयार हो सके।
निष्कर्ष: इंसान और AI — साथ-साथ
AI युद्ध के भविष्य का हिस्सा जरूर है, लेकिन पूरी तरह से इंसानों की जगह नहीं ले सकता। इसकी भूमिका supportive रहेगी — एक advisor, एक scout, एक striker की तरह।
आखिर में, युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि हौसलों, अनुभव और रणनीति से जीते जाते हैं। इंसान की सोच, संवेदना और मूल्य AI से बेहतर और गहरी हैं।
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